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रास्ते हम से राज़ कहने लगे - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

रास्ते हम से राज़ कहने लगे

रास्ते हम से राज़ कहने लगे

फिर तो हम रास्तों में रहने लगे

मेरे लफ़्ज़ों को मिल गई आँखें

सारे आँसू लबों से बहने लगे

शहर के लफ़्ज़ कर दिए वापस

अपनी ज़ात अपनी बात कहने लगे

हम अभी ठीक से बने भी न थे

ख़ुद से टकराए और ढहने लगे

उस ने तल्क़ीन-ए-सब्र की थी सो हम

जो न सहना था वो भी सहने लगे

हम ने मिट्टी की बेड़ियाँ काटीं

तोड़ा ज़िंदान-ए-आब बहने लगे

मुज़्दा ऐ सकिनान-ए-शहर-ए-सुख़न

'फ़रहत-एहसास' शे'र कहने लगे

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