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नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

नंग धड़ंग मलंग तरंग में आएगा जो वही काम करेंगे

कुफ़्र करेंगे जो आया जी जी चाहा तो इस्लाम करेंगे

रास्ते भर उस रूप की धूप में जान खपाएँगे मौत की हद तक

चलते समय फिर उस की ज़ुल्फ़ की छाँव में बिसराम करेंगे

देखो तुम अपने कच्चे दर-ओ-दीवार को पक्का मत करवाना

शहर में जब भी आएँगे हम तो तुम्हारे घर ही क़याम करेंगे

आज हमारे सरों पर है ये सूरज पर कल ख़ाक में होगा

हम ने तो बस आवाज़ लगा दी बाक़ी काम अवाम करेंगे

हम को एक बहुत ही बड़ी सच्चाई को अफ़्साना करना है

ख़ूब पिएँगे शराब-ए-वहम और ख़ूब ख़याल-ए-ख़ाम करेंगे

इश्क़ ही पूरी तरह कर लें तो समझो कोई जिहाद किया है

ये 'फ़रहत-एहसास' अज़ल के काहिल क्या कोई काम करेंगे

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