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मोहब्बत चाहते हो क्यूँ वफ़ा क्यूँ माँगते हो - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

मोहब्बत चाहते हो क्यूँ वफ़ा क्यूँ माँगते हो

मोहब्बत चाहते हो क्यूँ वफ़ा क्यूँ माँगते हो

तुम उन बीमार आँखों से दवा क्यूँ माँगते हो

मुसाफ़िर हो तो निकलो पाँव में आँखें लगा कर

किसी भी हम-सफ़र से रास्ता क्यूँ माँगते हो

उन्हें तो ख़ुद ही अपनी जान के लाले पड़े हैं

बेचारे शहर वालों से हवा क्यूँ माँगते हो

अभी कुछ था अभी कुछ है बदन आब-ए-रवाँ सा

बदन से आज-कल का वाक़िआ क्यूँ माँगते हो

हुदूद-ए-ख़ाक से बाहर नहीं आ पाएगा हुस्न

वो जितना है उसे उस से सिवा क्यूँ माँगते हो

हुजूम-ए-शहर में से तीर से निकले चले जाओ

हुजूम-ए-शहर से उस की रज़ा क्यूँ माँगते हो

मोहब्बत आप ही अपना सिला है 'फ़रहत-एहसास'

मोहब्बत कर रहे हो तो सिला क्यूँ माँगते हो

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