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काम उन आँखों की हवसनाकी की साज़िश आ गई - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

काम उन आँखों की हवसनाकी की साज़िश आ गई

काम उन आँखों की हवसनाकी की साज़िश आ गई

आख़िर उन परहेज़-गार आँखों को ख़्वाहिश आ गई

मैं तो समझा था कि हम दोनों अकेले हैं मगर

उस को छूते ही हमारे बीच ख़्वाहिश आ गई

हम बहुत ख़ुश थे मगर इक दिन हमारे दरमियाँ

कुछ अलग से और ख़ुश होने की कोशिश आ गई

बादलों की तरह टकराए थे दो जिस्म और फिर

बिजलियाँ कड़कीं और उस के बा'द बारिश आ गई

उस से मिलने की कोई सूरत निकलती ही न थी

और तभी दिल के अलीगढ़ की नुमाइश आ गई

हम तसव्वुफ़ के हुए आलिम तसव्वुफ़ छोड़ कर

दिल मोहब्बत से हुआ ख़ाली तो दानिश आ गई

फ़रहत-एहसास और अस्मा हो गए अहल-ए-निगाह

देखते ही देखते यूशी को बीनिश आ गई

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