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हम न प्यासे हैं न पानी के लिए आए हैं - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

हम न प्यासे हैं न पानी के लिए आए हैं

हम न प्यासे हैं न पानी के लिए आए हैं

तेरे हमराह रवानी के लिए आए हैं

ओहदा-ए-इश्क़ से बरख़ास्त हम इस दुनिया में

ख़ाक की ख़ुल्द-मकानी के लिए आए हैं

महफ़िल-ए-हाल में कल माज़ी-ओ-मुस्तक़बिल आए

और कहा मर्सिया-ख़्वानी के लिए आए हैं

क़िस्सा-गो नींद नहीं आई बहुत दिन से हमें

तिरे पास एक कहानी के लिए आए हैं

ज़िंदगी चुप न करा उन को कि बेचारे ये जिस्म

चंद दिन चर्ब-ज़बानी के लिए आए हैं

'फ़रहत-एहसास' को ख़ामोश न होने देना

कि मियाँ सिद्क़-बयानी के लिए आए हैं

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