हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
पर अब हैरत तो उस पर है कि दरिया जल रहा है
तुम्हें फ़ुर्सत हो जीने से तो अपने पार देखो
पस-ए-दीवार-ए-अय्याम इक ज़माना जल रहा है
ज़रा सी देर को शाने से अपना सर हटा ले
तिरे रुख़्सार के शो'लों से शाना जल रहा है
सफ़र करना है अगली सुब्ह और गर्मी-ए-पा से
मिरे बिस्तर का सारा पाइताना जल रहा है
पिघल कर गिर रहे हैं मेरे सर पर चाँद तारे
सुना है आसमाँ का शामियाना जल रहा है
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