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देखते ही देखते खोने से पहले देखते - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

देखते ही देखते खोने से पहले देखते

देखते ही देखते खोने से पहले देखते

रौशनी को रौशनी होने से पहले देखते

इस तरह ज़ाएअ' हुई होतीं न आँखें नींद में

हम ये सारे ख़्वाब अगर सोने से पहले देखते

शहर का आईना-ख़ाना है सर-ए-सैलाब-ए-अक्स

अपना चेहरा भीड़ में खोने से पहले देखते

बा'द का सारा सफ़र क़ाबू में रहता आप के

ख़ाक को गर बे-कराँ होने से पहले देखते

अब तो जो कुछ है सहाफ़त ही सहाफ़त है यहाँ

जो भी होना था उसे होने से पहले देखते

बीज किस सूरत में बाहर आएगा किस को ख़बर

फ़स्ल क्या होगी उसे बोने से पहले देखते

देखते बादल से बारिश तक सफ़र तकलीफ़ का

तुम मिरी आँखें अगर रोने से पहले देखते

देखने में देर कर दी आप ने 'एहसास' को

हो चुका बस वो उसे होने से पहले देखते

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