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बहुत ज़मीन बहुत आसमाँ मिलेंगे तुम्हें - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

बहुत ज़मीन बहुत आसमाँ मिलेंगे तुम्हें

बहुत ज़मीन बहुत आसमाँ मिलेंगे तुम्हें

प हम से ख़ाक के पुतले कहाँ मिलेंगे तुम्हें

ख़रीद लो अभी बाज़ार में नए हैं हम

कि बा'द में तो बहुत ही गराँ मिलेंगे तुम्हें

अब इब्तिदा-ए-सफ़र है तो जो है कह सुन लो

हम उस के बा'द न जाने कहाँ मिलेंगे तुम्हें

जो रास्ते में मिले कोई मस्जिद-ए-वीराँ

तो हम वहीं कहीं वक़्त-ए-अज़ाँ मिलेंगे तुम्हें

हम इंतिहा में मिलेंगे गर इब्तिदा में नहीं

नहीं वहाँ भी तो फिर दरमियाँ मिलेंगे तुम्हें

ठहर ही जाएँगे आख़िर कहीं जनाब-'एहसास'

पर अपने शेर में यूँ ही रवाँ मिलेंगे तुम्हें

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