औरों ने उस गली से क्या क्या न कुछ ख़रीदा
औरों ने उस गली से क्या क्या न कुछ ख़रीदा
हम कोर-चश्म उस के क़दमों की धूल लाए
दामन समाअ'तों का फूलों से भर रहा हूँ
उस से कहो कि अपनी बातों में तूल लाए
वही-ए-बदन न उतरी उस की हमारे दिल पर
हम सिर्फ़ उस की गर्द-ए-शान-ए-नुज़ूल लाए
हम को अगर ख़ुशी है तो ये कि इस जहाँ से
बे-बर्ग-ओ-बार गुज़रे फ़स्ल-ए-फ़ुज़ूल लाए
थी सख़्त तेग़-ए-इख़राज उस के मुक़ाबले पर
'एहसास' जैसा सूफ़ी अहल-ए-शुमूल लाए
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