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अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़ - फ़रहत एहसास कविता - Darsaal

अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़

अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़

बाहर किसे मिली है मगर घर की कोई चीज़

बाज़ार रोज़ आएगा जिस घर में बे-दरेग़

बाज़ार भी तो जाएगी उस घर की कोई चीज़

क़तरे का ए'तिमाद भी कुछ बे-सबब नहीं

क़तरे के पास भी है समुंदर की कोई चीज़

आज उस के लम्स-ए-गर्म से जैसे पिघल गई

मुझ में धड़क रही थी जो पत्थर की कोई चीज़

सारा हुजूम है किसी अपनी तलाश का

खोई गई है शहर में अक्सर की कोई चीज़

ये है किसी विसाल की हसरत कि ख़ौफ़-ए-हिज्र

चुभती है रात-भर मुझे बिस्तर की कोई चीज़

'एहसास' शाइ'री में घुलाता है फ़ल्सफ़ा

हर शे'र अर्ज़ करता है जौहर की कोई चीज़

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Ahl-e-badan Ko Ishq Hai Bahar Ki Koi Chiz In Hindi By Famous Poet Farhat Ehsas. Ahl-e-badan Ko Ishq Hai Bahar Ki Koi Chiz is written by Farhat Ehsas. Complete Poem Ahl-e-badan Ko Ishq Hai Bahar Ki Koi Chiz in Hindi by Farhat Ehsas. Download free Ahl-e-badan Ko Ishq Hai Bahar Ki Koi Chiz Poem for Youth in PDF. Ahl-e-badan Ko Ishq Hai Bahar Ki Koi Chiz is a Poem on Inspiration for young students. Share Ahl-e-badan Ko Ishq Hai Bahar Ki Koi Chiz with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.