आया ज़रा सी देर रहा ग़ुल गया बदन
आया ज़रा सी देर रहा ग़ुल गया बदन
अपनी उड़ाई ख़ाक में ही रुल गया बदन
ख़्वाहिश थी आबशार-ए-मोहब्बत में ग़ुस्ल की
हल्की सी इक फुवार में ही घुल गया बदन
ज़ेर-ए-कमान दिल था तो थोड़ी सी थी उमीद
अब तो हमारे हाथ से बिल्कुल गया बदन
अब देखता हूँ मैं तो वो अस्बाब ही नहीं
लगता है रास्ते में कहीं खुल गया बदन
मैं ने भी एक दिन उसे ताराज कर दिया
मुझ को हलाक करने पे जब तुल गया बदन
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