फ़रहत एहसास कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़रहत एहसास
नाम | फ़रहत एहसास |
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अंग्रेज़ी नाम | Farhat Ehsas |
जन्म की तारीख | 1952 |
जन्म स्थान | Delhi |
ये तेरा मेरा झगड़ा है दुनिया को बीच में क्यूँ डालें
ये धड़कता हुआ दिल उस के हवाले कर दूँ
ये बे-कनार बदन कौन पार कर पाया
वो जो इक शोर सा बरपा है अमल है मेरा
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
उसे ख़बर थी कि हम विसाल और हिज्र इक साथ चाहते हैं
उस से मिलने के लिए जाए तो क्या जाए कोई
उस जगह जा के वो बैठा है भरी महफ़िल में
तू फ़राहम न हो मुझ को ये है मर्ज़ी तेरी
तिरे होंटों के सहरा में तिरी आँखों के जंगल में
तमाम शहर की आँखों में रेज़ा रेज़ा हूँ
तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात
तभी वहीं मुझे उस की हँसी सुनाई पड़ी
शुस्ता ज़बाँ शगुफ़्ता बयाँ होंठ गुल-फ़िशाँ
सर सलामत लिए लौट आए गली से उस की
सख़्त तकलीफ़ उठाई है तुझे जानने में
सब के जैसी न बना ज़ुल्फ़ कि हम सादा-निगाह
क़िस्सा-ए-आदम में एक और ही वहदत पैदा कर ली है
फिर तुझे छू के देखता हूँ मैं
फिर सोच के ये सब्र किया अहल-ए-हवस ने
मोहब्बत फूल बनने पर लगी थी
मिट्टी की ये दीवार कहीं टूट न जाए
मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है
मेरी इक उम्र और इक अहद की तारीख़ रक़म है जिस पर
मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है
मेरे हर मिस्रे पे उस ने वस्ल का मिस्रा लगाया
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
मैं जब कभी उस से पूछता हूँ कि यार मरहम कहाँ है मेरा
मैं बिछड़ों को मिलाने जा रहा हूँ
मैं भी यहाँ हूँ इस की शहादत में किस को लाऊँ