शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ
शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ
तेरा बीमार तिलिस्मात से अच्छा न हुआ
तू ने दे कर मुझे जो ख़्वाब उतारा था यहाँ
इन में इक ख़्वाब भी तेरा कोई सच्चा न हुआ
इम्तेदाद-ए-सहर-ओ-शाम ज़मानों की क़सम
एक भी रंग मिरे प्यार का फीका न हुआ
शौक़-ए-बेहद ने किसी गाम ठहरने न दिया
वर्ना किस गाम मिरा ख़ून-ए-तमन्ना न हुआ
नाफ़ा-ए-मुश्क ने पीछा नहीं छोड़ा 'सालिम'
मुझ सा हैवाँ कोई जंगल में दिवाना न हुआ
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