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शौक़ का सिलसिला बे-कराँ है - फ़रीद जावेद कविता - Darsaal

शौक़ का सिलसिला बे-कराँ है

शौक़ का सिलसिला बे-कराँ है

ज़िंदगी कारवाँ कारवाँ है

हासिल-ए-नरमी-ए-शबनम-ओ-गिल

आतिश-ए-ग़म का सैल-ए-रवाँ है

हर नफ़स में तिरी आहटें हैं

हर नफ़स ज़िंदगी का निशाँ है

अपनी वीरानियों पर अभी तक

दिल को शादाबियों का गुमाँ है

हम-नफ़स दिल धड़कते हैं जब तक

कारोबार-ए-मोहब्बत जवाँ है

तोहमत-ए-मय-कशी भी उठाई

तिश्नगी है कि शो'ला-ब-जाँ है

उन के दामन में भी फूल होते

जिन से रा'नाई-ए-गुल्सिताँ है

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