न बुत-कदे में न का'बे में सर झुकाने से
न बुत-कदे में न का'बे में सर झुकाने से
सुकूँ मिला है तिरी अंजुमन में आने से
मिरे जुनूँ को मोहब्बत से देखने वाले
ज़रा निगाह बचाए हुए ज़माने से
मैं मुस्कुरा तो दिया उन की बे-नियाज़ी पर
ये क्या कि दिल पे लगी चोट मुस्कुराने से
बहुत किया है हक़ीक़त की तल्ख़ियों से गुरेज़
मगर बहल न सका दिल किसी फ़साने से
ख़ुशा कि अहद-ए-क़फ़स में भी ज़िंदगी के लिए
निगाह खेलती रहती है आशियाने से
उदास दिल को सहारा न मिल सका 'जावेद'
अँधेरी शब में सितारों के जगमगाने से
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