क्या हो गया कैसी रुत पलटी मिरा चैन गया मिरी नींद गई

क्या हो गया कैसी रुत पलटी मिरा चैन गया मिरी नींद गई

खुलती ही नहीं अब दिल की कली मिरा चैन गया मिरी नींद गई

मैं लाख रहूँ यूँही ख़ाक-बसर शादाब रहें तिरे शाम-ओ-सहर

नहीं उस का मुझे शिकवा भी कोई मिरा चैन गया मिरी नींद गई

मैं कब से हूँ आस लगाए हुए इक शम-ए-उमीद जलाए हुए

कोई लम्हा सुकूँ का मिले तो सही मिरा चैन गया मिरी नींद गई

'जावेद' कभी मैं शादाँ था मिरे साथ तरब का तूफ़ाँ था

फिर ज़िंदगी मुझ से रूठ गई मिरा चैन गया मिरी नींद गई

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