क्या बदल दोगे तुम इक नज़र से
क्या बदल दोगे तुम इक नज़र से
बे-क़रारी तो है उम्र भर से
दोस्तो शहर-ए-जाँ जल रहा है
अब कहाँ जाओगे और किधर से
ज़ख़्म हैं दिल पे क्या क्या न देखो
फूल चुन लो लब-ए-नग़्मागर से
जाग कर रात हम ने गुज़ारी
पूछ लो कारवान-ए-सहर से
ज़ुल्मत-ए-शब है 'जावेद' और हम
चाँद निकले न जाने किधर से
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