किस उजाले का निशाँ हैं हम लोग

किस उजाले का निशाँ हैं हम लोग

किन अँधेरों में रवाँ हैं हम लोग

नूर-ए-ख़ुर्शीद को इल्ज़ाम न दो

सुब्ह का ख़्वाब-ए-गिराँ हैं हम लोग

जैसे भटका हुआ राही हो कोई

यूँही हर सू निगराँ हैं हम लोग

कभी आवरगी-ए-निखत-ए-गुल

कभी ज़ंजीर-ए-गिराँ हैं हम लोग

दूर तक दश्त-ए-जुनूँ है 'जावेद'

आबला-पा गुज़राँ हैं हम लोग

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