छिपकिली
हजला-ए-तारीक में पाई है इस ने परवरिश
शम्अ' जलते ही दर-ओ-दीवार पर
ले के मटियाला सा काहीदा बदन
झूमती सर-मस्त आ जाती है ये
पा-ब-जौलाँ चंद परवानों के पास
ग़ोता-ज़न पाते ही जिन को आब-शार-ए-नूर में
तेज़ चमकीली नुकीली आँख से
यूँ देखती है बार-बार
जैसे इक सरमाया-दार
माल-ओ-ज़र की ओट से
करता है मुफ़लिस का शिकार
फिर निकल जाती है ये
सोज़-ओ-ग़म के शाहकार
रौशनी के ताजदार
चंद परवानों की जाँ-सोज़ी से क्या मतलब इसे
शम्अ' की रौशनी ख़याली इस के पीछे गर्द है
हजला-ए-तारीक में पाई है इस ने परवरिश
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