अफ़्साना-ए-शब-रंग
आरिज़-ए-गुल पे लरज़ती हुई बेकल शबनम
मुंतज़िर है कि चले बाद-ए-सहर
कोई झोंका
कोई सूरज की किरन
पास आ जाए तो अफ़्साना-ए-शब-रंग सुने
नग़्मा-ए-ज़हरा-ओ-नाहीद की झंकार सुने
बरबत-ए-सलमा के तारों की सदा-ए-दिलकश
आबशारों की निदा
ख़ारज़ारों की सदा
फूल के दिल की जलन सोज़िश-ए-महताब का हाल
डूबते तारों के ख़ामोश निगाहों का पयाम
नाला-ए-नीम-शबी
आह-ए-दिल-ए-ज़ार का हाल
आलम-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत की हिकायात सुने
पास आ जाए तो अफ़साना-ए-शबरंग सुने
और देखे किसी शाइ'र के फ़लक-बोस महल
किस तरह चाँद-सितारों को जनम देते हैं
किस तरह आरिज़-ए-गुलगूँ को रिदा-ए-शबनम
ढाँप लेती है सियह-रात के सन्नाटे में
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