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जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा - फ़रीद इशरती कविता - Darsaal

जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा

जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा

कभी जो नाला-ए-ग़म दिल से शो'ला-बार उठा

ख़्याल-ओ-फ़िक्र-ओ-तमन्ना का ख़ून छुप न सका

ज़बाँ ख़मोश थी लेकिन लहू पुकार उठा

फ़लक पे जब भी हक़ाएक़ की सुर्ख़ियाँ उभरीं

ज़मीं से कोहना रिवायात का ग़ुबार उठा

रवाँ-दवाँ है रग-ए-संग में लहू की तरह

वो ज़िंदगी का तलातुम जो बार बार उठा

रह-ए-हयात में जब डगमगाए मेरे क़दम

मिरा ही नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मुझे पुकार उठा

फ़रेब-ए-वादा-ए-फ़र्दा का ज़िक्र क्या कीजे

वो मो'तबर ही थे कब जिन का ए'तिबार उठा

'फ़रीद' अहल-ए-गुलिस्ताँ भी होश खो बैठे

कुछ इस अदा से हिजाब-ए-रुख़-ए-बहार उठा

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Jala Ke Daman-e-hasti Ka Tar Tar UTha In Hindi By Famous Poet Fareed Ishrati. Jala Ke Daman-e-hasti Ka Tar Tar UTha is written by Fareed Ishrati. Complete Poem Jala Ke Daman-e-hasti Ka Tar Tar UTha in Hindi by Fareed Ishrati. Download free Jala Ke Daman-e-hasti Ka Tar Tar UTha Poem for Youth in PDF. Jala Ke Daman-e-hasti Ka Tar Tar UTha is a Poem on Inspiration for young students. Share Jala Ke Daman-e-hasti Ka Tar Tar UTha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.