वो मेरे बारे में ऐसे भी सोचता कब था
वो मेरे बारे में ऐसे भी सोचता कब था
अगर मैं अक्स नहीं थी वो आइना कब था
जो जोड़ देता तअ'ल्लुक़ के सब रवाबित को
हमारे बीच कोई ऐसा सिलसिला कब था
वो ज़ीना ज़ीना मिरे दिल में यूँ उतरता गया
मैं रोक पाती उसे मुझ में हौसला कब था
वो ख़ुश-गुमान बहुत था कि मैं हूँ उस की मगर
ये आरज़ू थी फ़क़त मेरा फ़ैसला कब था
वो मेरे ज़ब्त को हर आन आज़माता रहा
मैं संग-ज़ाद हूँ उस को मगर पता कब था
सुना नहीं जो कहा था तो कैसे समझाते
जो उस ने समझा था मेरा वो मुद्दआ' कब था
बहार बन के वो मिलने तो आ गया था मुझे
ठहर भी जाएगा ये उस का फ़ैसला कब था
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