हमें तो साथ चलने का हुनर अब तक नहीं आया
हमें तो साथ चलने का हुनर अब तक नहीं आया
दिया अपने मुक़द्दर का नज़र अब तक नहीं आया
थीं जिस बादल के रस्ते पर हवा की मुंतज़िर आँखें
वो शहरों तक तो आया था इधर अब तक नहीं आया
न जाने जंगलों में हम मिले कितने दरख़्तों से
घना जिस का लगे साया शजर अब तक नहीं आया
तज़ब्ज़ुब के अँधेरों में भटकता है वो इक वा'दा
पलट कर जिस को आना था वो घर अब तक नहीं आया
सजाना छोड़ दे फूलों को इन चाँदी से बालों में
फ़लक पर वो सितारा इक अगर अब तक नहीं आया
भुला कर बस ज़रा सी देर सज्दों की इबादत को
ये सोचो क्यूँ दुआओं में असर अब तक नहीं आया
जहाँ लाखों मोहब्बत के चराग़ों से उजाला हो
'फ़रह' रौशन किसी दिल का वो दर अब तक नहीं आया
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