मेरी दादी
प्यारी प्यारी मेरी दादी
मुझ को कहती है शहज़ादी
मेरे सौ नख़रे सहती है
मेरी फ़िक्र उसे रहती है
जो भी माँगो सो देती है
एक नहीं वो दो देती है
मुझे मना कर ख़ुश होती है
वर्ना ग़ुस्से में रोती है
मुझे कोई जो मारे चट से
डाँट उसे देती है झट से
मुझ से दूर नहीं रह सकती
वो ये बात नहीं सह सकती
करम ख़ुदा का है ये बे-शक
उस की आँखों की हूँ ठंडक
अम्बर पर तारे हैं जितने
याद उसे हैं क़िस्से उतने
दिल की बात कहूँगी मिल के
नज़्म 'फ़राग़'-अंकल कर देंगे
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