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मेरी दादी - फ़राग़ रोहवी कविता - Darsaal

मेरी दादी

प्यारी प्यारी मेरी दादी

मुझ को कहती है शहज़ादी

मेरे सौ नख़रे सहती है

मेरी फ़िक्र उसे रहती है

जो भी माँगो सो देती है

एक नहीं वो दो देती है

मुझे मना कर ख़ुश होती है

वर्ना ग़ुस्से में रोती है

मुझे कोई जो मारे चट से

डाँट उसे देती है झट से

मुझ से दूर नहीं रह सकती

वो ये बात नहीं सह सकती

करम ख़ुदा का है ये बे-शक

उस की आँखों की हूँ ठंडक

अम्बर पर तारे हैं जितने

याद उसे हैं क़िस्से उतने

दिल की बात कहूँगी मिल के

नज़्म 'फ़राग़'-अंकल कर देंगे

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