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गुड़िया की शादी - फ़राग़ रोहवी कविता - Darsaal

गुड़िया की शादी

संडे के दिन हम सब खेलें

लुत्फ़ ज़रा छुट्टी का ले लें

डोली लाओ घोड़ा लाओ

गुड्डा लाओ गुड़िया लाओ

इन दोनों की कर दें शादी

आ जाएँ बाराती हादी

कुछ दावत-नामे छपवा लो

कुछ मेहमानों को बुलवा लो

गुड्डे का सहरा ले आओ

गुड़िए का गजरा ले आओ

गुड्डे का साफ़ा भी लाना

गुड़िए का लहँगा भी लाना

हल्दी पीसेगी नज़राना

मेहंदी पीसेगी फ़रज़ाना

सारा घर आँगन सज्वा दो

दर पर शहनाई बजवा दो

कच्ची बिरयानी पकवा लो

शाही टुकड़े भी बनवा लो

शर्बत और काफ़ी भी रखना

मिस्री और टॉफ़ी भी रखना

गुड्डा गुड़िया जब हैं राज़ी

नजमी बन जाएगा क़ाज़ी

धूम-धाम से होगी शादी

याद करेगी क्या शहज़ादी

हिन्दोस्तानी साज़ बजेंगे

गीत 'फ़राग़' अंकल लिख देंगे

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