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एक रहें हम - फ़राग़ रोहवी कविता - Darsaal

एक रहें हम

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई

आदम की औलाद हैं भाई

क्यूँ आपस में करें लड़ाई

सब हैं इक दूजे के भाई

उर्फ़ी बेदी जानी काशी

हम सब हैं भारत के बाशी

जहाँ रहें पर एक रहें हम

ख़ूब पढ़ें और नेक बनें हम

अलग अलग है सब की भाषा

एक मगर है अपनी आशा

गुलशन सा हो वतन हमारा

हरा-भरा हो चमन हमारा

कोई अनोखा काम करें हम

दुनिया भर में नाम करें हम

दुश्मन घर घर आग लगाए

इस से पहले हमें मिटाए

पहन के अपने देश की वर्दी

जड़ से मिटा दें दहश्त-गर्दी

बात 'फ़राग़' अंकल की मानो

अपनी ताक़त को पहचानो

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