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चिड़िया-ख़ाना - फ़राग़ रोहवी कविता - Darsaal

चिड़िया-ख़ाना

नजमी फ़हमी उज़मा राना

आओ देखें चिड़िया-ख़ाना

जिन के नाम सुना करते हो

आज उन्हें नज़दीक से देखो

एक से एक परिंदे देखो

आदम-ख़ोर दरिंदे देखो

मोर सरों पर ताज सजाए

नाच रहे हैं पर फैलाए

बुलबुल देखो तोता देखो

कोयल देखो मैना देखो

ख़ुश-आवाज़ पपीहा देखो

हुद-हुद और गौरय्या देखो

भौंरा देखो तितली देखो

शेर की ख़ाला बिल्ली देखो

ज़ेबरा घोड़ा टट्टू ख़च्चर

बाज़ कबूतर कव्वा तीतर

वो देखो ख़रगोश गिलहरी

बारा-सिंघा और वो हिरनी

बन-मानुस और भालू भी है

नेवला और कंगारू भी है

बंदर की नक़्क़ाली देखो

पीट रहे हैं ताली देखो

दो दो हाथी झूम रहे हैं

दूर गधे भी घूम रहे हैं

शेरों का ग़ुर्राना देखो

तेंदवे का बल खाना देखो

वो देखो अफ़रीक़ी गैंडा

और ये हिन्दोस्तानी चीता

फन काढ़े इक नागन भी है

लोमड़ी इक मक्कारन भी है

बुज़दिल गीदड़ लक्कड़-बग्घा

कौन बनेगा लीडर इस का

दिलकश ताइर आबी देखो

कैसी है मुर्ग़ाबी देखो

मछली को लहराते देखो

मेंडक को टर्राते देखो

एक मगरमच्छ जाग रहा है

देख के कछवा भाग रहा है

आज 'फ़राग़' अंकल ने देखा

कलकत्ते का चिड़िया-ख़ाना

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