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ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है - फ़राग़ रोहवी कविता - Darsaal

ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है

ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है

थोड़ा झूटा मैं भी ठहरा थोड़ा झूटा तू भी है

जंग अना की हार ही जाना बेहतर है अब लड़ने से

मैं भी हूँ टूटा टूटा सा बिखरा बिखरा तू भी है

जाने किस ने डर बोया है हम दोनों की राहों में

मैं भी हूँ कुछ ख़ौफ़-ज़दा सा सहमा सहमा तू भी है

इक मुद्दत से फ़ासला क़ाएम सिर्फ़ हमारे बीच ही क्यूँ

सब से मिलता रहता हूँ मैं सब से मिलता तू भी है

अपने अपने दिल के अंदर सिमटे हुए हैं हम दोनों

गुम-सुम गुम-सुम मैं भी बहुत हूँ खोया खोया तू भी है

हम दोनों तज्दीद-ए-रिफ़ाक़त कर लेते तो अच्छा था

देख अकेला मैं ही नहीं हूँ तन्हा तन्हा तू भी है

हद से 'फ़राग़' आगे जा निकले दोनों अना की राहों पर

सर्फ़-ए-पशेमाँ मैं ही नहीं हूँ कुछ शर्मिंदा तू भी है

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