जिस दिन से कोई ख़्वाहिश-ए-दुनिया नहीं रखता
जिस दिन से कोई ख़्वाहिश-ए-दुनिया नहीं रखता
मैं दिल में किसी बात का खटका नहीं रखता
मुझ में है यही ऐब कि औरों की तरह मैं
चेहरे पे कभी दूसरा चेहरा नहीं रखता
क्यूँ क़त्ल मुझे कर के डुबोते हो नदी में
दो दिन भी किसी लाश को दरिया नहीं रखता
क्यूँ मुझ को लहू देने पे तुम लोग ब-ज़िद हो
मैं सर पे किसी शख़्स का क़र्ज़ा नहीं रखता
अहबाब तो अहबाब हैं दुश्मन के तईं भी
कम-ज़र्फ़ ज़माने का रवैया नहीं रखता
ये सच है कि मैं ग़ालिब-ए-सानी नहीं लेकिन
यारान-ए-मुआसिर का भी लहजा नहीं रखता
बादल तो 'फ़राग़' अस्ल में होता है वो बादल
जो प्यास के सहरा को भी प्यासा नहीं रखता
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