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फटी मश्कें लिए दिन-रात दरिया देखने वाले - फ़क़ीह हैदर कविता - Darsaal

फटी मश्कें लिए दिन-रात दरिया देखने वाले

फटी मश्कें लिए दिन-रात दरिया देखने वाले

बयाबाँ बन गए पानी ज़ियादा देखने वाले

यहाँ कोई मुसलसल देखने वाला नहीं तुझ को

हमारे साथ चल हम हैं हमेशा देखने वाले

तुम्हारे हुस्न से इंसाफ़ करने का तक़ाज़ा है

तुम्हें देखें ज़ियादा से ज़ियादा देखने वाले

इमारत इश्क़ की तन्हा खड़ी होगी कहाँ तुम से

हमें भी साथ रक्खो हम हैं नक़्शा देखने वाले

हमारे सामने तारीफ़ करता कौन कूफ़े की

सभी को इल्म था हम हैं मदीना देखने वाले

बिछड़ते वक़्त मुड़ कर इस लिए देखा नहीं मैं ने

कई मंज़र नहीं होते दोबारा देखने वाले

किसी ने मा-सिवा-ए-ख़ाक दिल से कुछ नहीं पाया

बहुत से लोग आए ये इलाक़ा देखने वाले

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