Love Poetry of Fani Badayuni (page 1)
नाम | फ़ानी बदायुनी |
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अंग्रेज़ी नाम | Fani Badayuni |
जन्म की तारीख | 1879 |
मौत की तिथि | 1941 |
जन्म स्थान | Badayun |
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का
यूँ न किसी तरह कटी जब मिरी ज़िंदगी की रात
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
वो नज़र कामयाब हो के रही
रूह अरबाब-ए-मोहब्बत की लरज़ जाती है
रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़
नहीं ज़रूर कि मर जाएँ जाँ-निसार तेरे
मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है
मौत आने तक न आए अब जो आए हो तो हाए
मौजों की सियासत से मायूस न हो 'फ़ानी'
मैं ने 'फ़ानी' डूबती देखी है नब्ज़-ए-काएनात
किस ख़राबी से ज़िंदगी 'फ़ानी'
जीने भी नहीं देते मरने भी नहीं देते
जवानी को बचा सकते तो हैं हर दाग़ से वाइ'ज़
जल्वा ओ दिल में फ़र्क़ नहीं जल्वे को ही अब दिल कहते हैं
इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है
होते हैं राज़-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत इसी से फ़ाश
हर नफ़स उम्र-ए-गुज़िश्ता की है मय्यत 'फ़ानी'
इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में किस का ज़ुहूर था
दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी
ज़ीस्त का हासिल बनाया दिल जो गोया कुछ न था
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
ज़ब्त अपना शिआर था न रहा
ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ
यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था
ये किस क़यामत की बेकसी है ज़मीं ही अपना न यार मेरा
याँ होश से बे-ज़ार हुआ भी नहीं जाता
वो पूछते हैं हिज्र में है इज़्तिराब क्या