तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं
वर्ना उम्मीद कब बर आई है
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क़सम न खाओ तग़ाफ़ुल से बाज़ आने की
जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
सितम-ईजाद रहोगे सितम-ईजाद रहे
क्या छुपाते किसी से हाल अपना
अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
हो काश वफ़ा वादा-ए-फ़र्दा-ए-क़यामत
हर घड़ी इंक़लाब में गुज़री
मुझे बुला के यहाँ आप छुप गया कोई
या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'
गुज़र गया इंतिज़ार हद से ये वादा-ए-ना-तमाम कब तक
जीने भी नहीं देते मरने भी नहीं देते
कफ़न ऐ गर्द-ए-लहद देख न मैला हो जाए