मौजों की सियासत से मायूस न हो 'फ़ानी'
गिर्दाब की हर तह में साहिल नज़र आता है
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वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया
तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम
ख़ुदा असर से बचाए इस आस्ताने को
एक आलम को देखता हूँ मैं
बहला न दिल न तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म गई
क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए
अब ये भी नहीं कि नाम तो लेते हैं
तिरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा
हर घड़ी इंक़लाब में गुज़री
दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर क्या हो
या तिरे मुहताज हैं ऐ ख़ून-ए-दिल
तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं