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ज़ीस्त का हासिल बनाया दिल जो गोया कुछ न था - फ़ानी बदायुनी कविता - Darsaal

ज़ीस्त का हासिल बनाया दिल जो गोया कुछ न था

ज़ीस्त का हासिल बनाया दिल जो गोया कुछ न था

ग़म ने दिल को दिल बनाया वर्ना क्या था कुछ न था

वो तो मेरे सामने थे देखने की देर थी

मैं ने आँखें बंद कर लीं वर्ना पर्दा कुछ न था

या अलम-कोशी रही या ख़ुद-फ़रामोशी रही

दिल किसी दिन दिल न था या दर्द था या कुछ न था

कुछ समझ कर ख़ुद ही हम ने जान दे दी दिल के साथ

उन की नज़रों का अभी ऐसा तक़ाज़ा कुछ न था

आप का दीवाना था ये इद्दआ बातिल सही

'फ़ानी'-ए-दीवाना दीवाना भी था या कुछ न था

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