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वादी-ए-शौक़ में वारफ़्ता-ए-रफ़्तार हैं हम - फ़ानी बदायुनी कविता - Darsaal

वादी-ए-शौक़ में वारफ़्ता-ए-रफ़्तार हैं हम

वादी-ए-शौक़ में वारफ़्ता-ए-रफ़्तार हैं हम

बे-ख़ुदी कुछ तो बता किस के तलबगार हैं हम

हाँ अभी बे-ख़बर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार हैं हम

मुज़्दा ऐ मश्क़-ए-सितम ताज़ा गिरफ़्तार हैं हम

हो ग़म-ए-हस्ती-ए-जावेद गवारा क्यूँकर

जान क्या दें कि बहुत जान से बे-ज़ार हैं हम

मैं ने गोया सिला-ए-मेहर-ओ-वफ़ा भर पाया

काश इतना ही वो कह दें कि जफ़ाकार हैं हम

यूँ तो कुछ ग़म से सरोकार न राहत की तलाश

ग़म कोई दिल के एवज़ दे तो ख़रीदार हैं हम

वो है मुख़्तार सज़ा दे कि जज़ा दे 'फ़ानी'

दो-घड़ी होश में आने के गुनहगार हैं हम

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