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सितम-ईजाद रहोगे सितम-ईजाद रहे - फ़ानी बदायुनी कविता - Darsaal

सितम-ईजाद रहोगे सितम-ईजाद रहे

सितम-ईजाद रहोगे सितम-ईजाद रहे

इस में अब शाद रहे या कोई नाशाद रहे

आप ने अहद किया है मिरी ग़म-ख़्वारी का

अब इजाज़त हो तो ये अहद मुझे याद रहे

गर मिरी तौबा को मक़्बूल शिकस्त-ए-तौबा

मेरी तदबीर में तक़दीर की उफ़्ताद रहे

क़ैद-ए-हस्ती से बहुत तुम ने किए हैं आज़ाद

कोई इस क़ैद-ए-मोहब्बत की भी मीआद रहे

वो ख़ुदाई हो तो हो शान-ए-तजल्ली तो नहीं

जिस तजल्ली में निगाहों को ख़ुदा याद रहे

ज़ुल्म है तुझ से ब-तक़रीब-ए-तकल्लुफ़ मंसूब

वर्ना तक़दीर-ए-वफ़ा ये है कि बर्बाद रहे

दिल-ए-आबाद का 'फ़ानी' कोई मफ़्हूम नहीं

हाँ मगर जिस में कोई हसरत-ए-बर्बाद रहे

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