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मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं - फ़ानी बदायुनी कविता - Darsaal

मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं

मर कर तिरे ख़याल को टाले हुए तो हैं

हम जान दे के दिल को सँभाले हुए तो हैं

बे-ज़ार हो न जाए कहीं ज़िंदगी से दिल

तासीर से ख़फ़ा मिरे नाले हुए तो हैं

रिसते हैं अब के साल कि बहते हैं देखिए

फिर फ़स्ल-ए-गुल में ज़ख़्म-ए-दिल आले हुए तो हैं

अरमाँ जो यूँ नहीं तो निकलते हैं किस तरह

यानी हमारे दिल से निकाले हुए तो हैं

हाँ दर्द-ए-इश्क़ उन पे करम की नज़र रहे

सब्र ओ क़रार तेरे हवाले हुए तो हैं

ये सोहबतें भी देखिए लाती हैं रंग क्या

मेहमान ख़ार पाँव के छाले हुए तो हैं

क्या जानिए कि हश्र हो क्या सुब्ह-ए-हश्र का

बेदार तेरे देखने वाले हुए तो हैं

'फ़ानी' तिरे अमल हमा-तन जब्र ही सही

साँचे में इख़्तियार के ढाले हुए तो हैं

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