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आप से शरह-ए-आरज़ू तो करें - फ़ानी बदायुनी कविता - Darsaal

आप से शरह-ए-आरज़ू तो करें

आप से शरह-ए-आरज़ू तो करें

आप तकलीफ़-ए-गुफ़्तुगू तो करें

वो यहीं हैं जो वो कहीं भी नहीं

आइए दिल में जुस्तुजू तो करें

अहल-ए-दुनिया मुझे समझ लेंगे

दिल किसी दिन ज़रा लहू तो करें

रंग ओ बू क्या है ये तो समझा दो

सैर-ए-दुनिया-ए-रंग-ओ-बू तो करें

तुम से मिलने की आरज़ू ही सही

तुम से मिलने की आरज़ू तो करें

वो उधर रुख़ इधर है मय्यत का

लोग 'फ़ानी' को क़िबला-रू तो करें

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