फ़ानी बदायुनी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का फ़ानी बदायुनी
नाम | फ़ानी बदायुनी |
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अंग्रेज़ी नाम | Fani Badayuni |
जन्म की तारीख | 1879 |
मौत की तिथि | 1941 |
जन्म स्थान | Badayun |
वो हूर को चाहा कि परी को चाहा
कितनों को जिगर का ज़ख़्म सीते देखा
अब ये भी नहीं कि नाम तो लेते हैं
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का
ज़माना बर-सर-ए-आज़ार था मगर 'फ़ानी'
यूँ न क़ातिल को जब यक़ीं आया
यूँ न किसी तरह कटी जब मिरी ज़िंदगी की रात
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'
यारब नवा-ए-दिल से ये कान आश्ना से हैं
या तिरे मुहताज हैं ऐ ख़ून-ए-दिल
या कहते थे कुछ कहते जब उस ने कहा कहिए
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
वो नज़र कामयाब हो के रही
उस को भूले तो हुए हो 'फ़ानी'
तुम्हीं कहो कि तुम्हें अपना समझ के क्या पाया
तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम
तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं
सूर-ओ-मंसूर-ओ-तूर अरे तौबा
सुने जाते न थे तुम से मिरे दिन-रात के शिकवे
सुने जाते न थे तुम से मिरे दिन रात के शिकवे
शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं
रूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर
रूह अरबाब-ए-मोहब्बत की लरज़ जाती है
रोज़-ए-जज़ा गिला तो क्या शुक्र-ए-सितम ही बन पड़ा
रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़
रोने के भी आदाब हुआ करते हैं 'फ़ानी'
फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर