वो जाने कितना सर-ए-बज़्म शर्मसार हुआ
वो जाने कितना सर-ए-बज़्म शर्मसार हुआ
सुना के अपनी ग़ज़ल मैं क़ुसूर-वार हुआ
हज़ार बार वो गुज़रा है बे-नियाज़ाना
न जाने क्यूँ मुझे अब के ही ना-गवार हुआ
हज़ारों हाथ मिरी सम्त एक साथ उठे
मगर मैं एक ही पत्थर में संगसार हुआ
मैं तेरी याद में गुम था कि खा गया ठोकर
ये हादसा मिरी राहों में बार बार हुआ
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