जब भी नज़्म-ए-मै-कदा बदला गया
जब भी नज़्म-ए-मै-कदा बदला गया
इक न इक जाम-ए-हसीं तोड़ा गया
जब सफ़ीना मौज से टकरा गया
नाख़ुदा को भी ख़ुदा याद आ गया
मैं ने छेड़ा क़िस्सा-ए-जौर-ए-फ़लक
जाने क्यूँ उन को पसीना आ गया
देख कर उन की जफ़ाओं का ख़ुलूस
मैं वफ़ा के नाम पर शर्मा गया
आप अब आए आँसू पोंछने
जब मिरे दामन पे धब्बा आ गया
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