हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
कुछ अक़्ल के मारे हमें दीवाना कहेंगे
रहता है वहाँ ज़िक्र-ए-तुहूर-ओ-मय-ए-कौसर
हम आज से काबे को भी मय-ख़ाना कहेंगे
उनवान बदल देंगे फ़क़त आप की ख़ातिर
हम जब भी कहेंगे यही अफ़्साना कहेंगे
परवाने को हम शम्अ समझते हैं सर-ए-शाम
हंगाम-ए-सहर शम्अ को परवाना कहेंगे
सर रख के तिरे पाँव पे हम करते हैं शिकवा
कुछ लोग इसे सज्दा-ए-शुकराना कहेंगे
बन जाएगा अल्लाह का घर ख़ुद ही किसी दिन
फ़िलहाल 'फ़ना' दिल को सनम-ख़ाना कहेंगे
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