Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_6add2d42de9bf70ea22399532b56f496, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ - फ़ना निज़ामी कानपुरी कविता - Darsaal

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

हर जगह मेरा जुनूँ रुस्वा हुआ

ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ

छोड़ आए आशियाँ जलता हुआ

हुस्न का चेहरा भी है उतरा हुआ

आज अपने ग़म का अंदाज़ा हुआ

मैं तो पहुँचा ठोकरें खाता हुआ

मंज़िलों पर ख़िज़्र का चर्चा हुआ

रहता है मय-ख़ाने ही के आस-पास

शैख़ भी है आदमी पहुँचा हुआ

पुर्सिश-ए-ग़म आप रहने दीजिए

ये तमाशा है मिरा देखा हुआ

ये इमारत तो इबादत-गाह है

इस जगह इक मय-कदा था क्या हुआ

ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात है

ये भी दरिया है मगर ठहरा हुआ

इस तरह रहबर ने लूटा कारवाँ

ऐ 'फ़ना' रहज़न को भी सदमा हुआ

(1334) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ghar Hua Gulshan Hua Sahra Hua In Hindi By Famous Poet Fana Nizami Kanpuri. Ghar Hua Gulshan Hua Sahra Hua is written by Fana Nizami Kanpuri. Complete Poem Ghar Hua Gulshan Hua Sahra Hua in Hindi by Fana Nizami Kanpuri. Download free Ghar Hua Gulshan Hua Sahra Hua Poem for Youth in PDF. Ghar Hua Gulshan Hua Sahra Hua is a Poem on Inspiration for young students. Share Ghar Hua Gulshan Hua Sahra Hua with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.