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दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा - फ़ना निज़ामी कानपुरी कविता - Darsaal

दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा

दिल से अगर कभी तिरा अरमान जाएगा

घर को लगा के आग ये मेहमान जाएगा

सब होंगे उस से अपने तआरुफ़ की फ़िक्र में

मुझ को मिरे सुकूत से पहचान जाएगा

इस कुफ़्र-ए-इश्क़ से मुझे क्यूँ रोकते हो तुम

ईमान वालो मेरा ही ईमान जाएगा

आज उस से मैं ने शिकवा किया था शरारतन

किस को ख़बर थी इतना बुरा मान जाएगा

अब इस मक़ाम पर हैं मिरी बे-क़रारियाँ

समझाने वाला हो के पशेमान जाएगा

दुनिया पे ऐसा वक़्त पड़ेगा कि एक दिन

इंसान की तलाश में इंसान जाएगा

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