Sad Poetry of Fana Bulandshahri
नाम | फ़ना बुलंदशहरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Fana Bulandshahri |
ऐ 'फ़ना' मेरी मय्यत पे कहते हैं वो
ये तमन्ना है कि इस तरह मुसलमाँ होता
वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है
उन के जल्वों पे हमा-वक़्त नज़र होती है
तुम हो शरीक-ए-ग़म तो मुझे कोई ग़म नहीं
तुझे ढूँढती हैं नज़रें मुझे इक झलक दिखा जा
तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं
तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है
निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम
मुझ को दुनिया के हर इक ग़म से छुड़ा रक्खा है
मिरी लौ लगी है तुझ से ग़म-ए-ज़िंदगी मिटा दे
मिरे दाग़-ए-दिल वो चराग़ हैं नहीं निस्बतें जिन्हें शाम से
मक़ाम-ए-होश से गुज़रा मकाँ से ला-मकाँ पहुँचा
माइल-ब-करम मुझ पर हो जाएँ तो अच्छा हो
किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी
किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं
काफ़िर-ए-इश्क़ को क्या से क्या कर दिया
जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया
जल्वा जो तिरे रुख़ का एहसास में ढल जाए
जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा
हरम है क्या चीज़ दैर क्या है किसी पे मेरी नज़र नहीं है
हर घड़ी पेश-ए-नज़र इश्क़ में क्या क्या न रहा
हाँ वही इश्क़-ओ-मोहब्बत की जिला होती है
है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है
ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दिल
दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया
बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं
अँधेरे लाख छा जाएँ उजाला कम नहीं होता
ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके
ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा