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वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है - फ़ना बुलंदशहरी कविता - Darsaal

वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है

वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है

मुझ को तो तेरे नक़्श-ए-क़दम की तलाश है

मैं तो गुनाहगार-ए-मोहब्बत हूँ ऐ सनम

मुझ को तिरी निगाह-ए-करम की तलाश है

ज़ाहिद सनम-कदा मेरी मंज़िल नहीं मगर

आशिक़ हूँ मुझ को अपने सनम की तलाश है

मैं तेरा हो चुका हूँ ज़माने से क्या ग़रज़

ऐ जान-ए-जाँ मुझे तिरे ग़म की तलाश है

ज़ाहिद तलाश करता हूँ अपने सनम को मैं

तुझ को सनम के बदले इरम की तलाश है

ले कर हरम में शैख़ गया दीन की तलब

पंडित को बुत-कदे में धरम की तलाश है

हम आशिक़ों का क्या है ये मर्ज़ी है यार की

उन का सितम मिले तो सितम की तलाश है

मेरा धरम यही है कि मिल जाए तू मुझे

तेरी ही जुस्तुजू में हरम की तलाश है

मैं तो 'फ़ना' हूँ इश्क़ में ऐ जान क्या कहें

तुम जो अता करो उसी ग़म की तलाश है

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