तेरे दर से न उठा हूँ न उठूँगा ऐ दोस्त
तेरे दर से न उठा हूँ न उठूँगा ऐ दोस्त
ज़िंदगी तेरे बिना ख़्वाब है अफ़्साना है
मुद्दआ इस के अलावा नहीं कुछ और मिरा
तेरा दीवाना हूँ दर पे तिरे मिट जाना है
ऐ 'फ़ना' कहते हैं मेराज-ए-इबादत उस को
मेरे हर सज्दे का हासिल दर-ए-जानाना है
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