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तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है - फ़ना बुलंदशहरी कविता - Darsaal

तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है

तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है

तिरे ग़म से मेरे जानाँ मिरे दिल में रौशनी है

मिरी मय-कशी का हासिल वो शराब बन गई है

जो मिली तिरी नज़र से जो तिरी नज़र से पी है

तुझे सामने बिठा कर सदा पूजता रहूँ मैं

है यही मिरी इबादत यही मेरी बंदगी है

मिरे दिल में बसने वाले तुझे कैसे भूल जाऊँ

तिरा इश्क़ मेरा मज़हब तिरी याद ज़िंदगी है

मिरी इल्तिजा है तुझ से मिरी बंदगी बदल दे

कि तिरे करम मिरी जाँ मिरी लौ लगी हुई है

मैं फ़क़ीर आस्ताँ हूँ मिरी लाज रख ख़ुदारा

ये जबीन-ए-शौक़ मेरी तिरे दर पे झुक गई है

मैं 'फ़ना' की मंज़िलों में हूँ फ़ना कि बा'द ज़िंदा

तिरी आरज़ू में मिट कर मुझे ज़िंदगी मिली है

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