मिरी लौ लगी है तुझ से ग़म-ए-ज़िंदगी मिटा दे
मिरी लौ लगी है तुझ से ग़म-ए-ज़िंदगी मिटा दे
तिरा नाम है मसीहा मिरे दर्द की दवा दे
मिरी प्यास बढ़ रही है मिरा दिल सुलग रहा है
जो नहीं है जाम साक़ी तो निगाह से पिला दे
मिरा मुद्दआ' है इतना तू अगर करे गवारा
मैं फ़क़ीर-ए-आस्ताँ हूँ मुझे बंदगी सिखा दे
मुझे शौक़-ए-बंदगी में यही एक आरज़ू है
तिरा नक़्श-ए-पा जहाँ हो मिरा सर वहीं झुका दे
मुझे देख कर परेशाँ क्या कहेगा ये ज़माना
मैं भटक रहा हूँ दर दर मुझे आ के आसरा दे
तिरा जाम जाम-ए-कौसर तिरा मय-कदा है जन्नत
मिरे हाल पे करम कर मिरी तिश्नगी बुझा दे
जिसे आप चाहते थे वो 'फ़ना' है अब कफ़न में
कोई जा के आज उन को ज़रा ये ख़बर सुना दे
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