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किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी - फ़ना बुलंदशहरी कविता - Darsaal

किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी

किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी

मेरे ईमान का हासिल है मोहब्बत तेरी

जाने क्या बात है जल्वों में तिरे जान-ए-जहाँ

याद आता है ख़ुदा देख के सूरत तेरी

अब निगाहों में जचेगा न कोई रंग-ओ-जमाल

मेरी आँखों को पसंद आ गई रंगत तेरी

अपनी क़िस्मत पे फ़रिश्तों की तरह नाज़ करूँ

मुझ पे हो जाए अगर चश्म-ए-इनायत तेरी

हरम-ओ-दैर के जल्वों से मुझे क्या मतलब

शीशा-ए-दिल में उतर आई है सूरत तेरी

आस्ताने से तिरे सर न उठेगा मेरा

मुद्दआ' बन के मिली है मुझे निस्बत तेरी

मैं 'फ़ना' हो के पहुँच जाऊँगा तेरे दर तक

राह दिखलाने लगी मुझ को मोहब्बत तेरी

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